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Friday, July 15, 2011

Zindagi me kuch nahi teri dosti ke siwa.........


Dil me kuch nahi dard ke siwa,
Aankho me kuch nahi aansu ke siwa,
Dost tu mat saath chodna,
Zindagi me kuch nahi teri dosti ke siwa.


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Dosti karo to dhoka mat dena,
Dusro ko aansu ka tohfa mat dena,
Dil se roye koi zindagi bhar,
Aisa kisi ko moka mat dena..




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Fiza me mehekti shaam ho tum,
Pyar me chalakata jaam ho tum,
tumhe dil me chupaye phirte hai,
Ae dost meri zindagika dusra naam ho tum.




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Bina dard ke aansu bahaye nahi jate,
Bina pyar ke rishte nibhaye nahi jate,
E dost yaad rakhna bina DIL diye DIL paye bhi nahi jate.

Monday, July 11, 2011

जिंदगी क्या है.........


ग़ज़ल क्या है, दर्द के समंदर में उतरकर देखो
शेर क्या है, किसी के गम में तडपकर देखो
जिंदगी क्या है, जान जाओगे दु:ख सहकर यारों
खुशी क्या है, इस जहां में तुम दिल लगाकर देखो

राग क्या है, मन की झील में नहाकर देखो
संगीत क्या है, सूरों को दिल में सजाकर देखो
जादू क्या है, जान जाओगे लय में डूबकर देखो
नशा क्या है, आत्मा संग दिल से गाकर देखो

मशवरा है.......

जीवन क्या है किसी दु:खी को तुम अपनाकर देखो
खुशी क्या है किसी के तुम काम आकर देखो
सुख मिलता है कैसे जीवनभर न समझ पाया कोई
किसी के गम में खुद को तुम लूटाकर देखो

बहुत खूब। कहते हैं कि-

मशवरा है बड़े खुलुस के साथ कि दूसरे के दुखों में काम आओ।
तुम फरिश्ता तो बन नहीं सकते कम से कम आदमी तो बन जाओ।।

मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।

सूरज की किरण हूं यूं चमक छोड़ जाऊंगा..

कोई कहता है जिंदगी जीने का नाम है
कोई कहता है जिंदगी पीने का नाम है
दोस्तों ये सब नजर-नजर का खेल है
जिंदगी जख्मों से भरे सीने का नाम है।
 
नरेंद्र तायवाड़े, राजनांदगांव (छग)

चलो तस्कीद कर लें अब अपनी बात की।
आने वाली फिर इक नई मुलाकात की।
सुना है मौसमे बहार भी आने को है।
दास्तां कोई सुना रहा चांदनी रात की।
 
अमर मलंग, कटनी (मप्र)

बेवफा नहीं हूं तो कैसे दिल तोड़ जाऊंगा
सूरज की किरण हूं यूं चमक छोड़ जाऊंगा।
वादा नहीं करता जिंदगी ये कर्जदार है
न जाने किस मोड़ पर सांसें छोड़ जाऊंगा।
 
पंकज आशिया, सोजत सिटी (राज.)

खामोश रहकर क्यूं हमें जलाते हैं वो

खामोश रहकर क्यूं हमें जलाते हैं वो
अपनी यादों से हमें क्यूं रुलाते हैं वो।
तस्वीर भी नहीं है मेरे पास उनकी
तो क्यूं बंद आंखों में नजर आते हैं वो।

ज्ञानेश्वर गेण्डरे, सिमगा, रायपुर (छग)

यूं पड़ रही है चांदनी उनके शबाब पर
जैसे शराब खुद ही फिदा हो शराब पर।
उसके बरक-बरक को उड़ा ले गई हवा
मैंने तुम्हारा नाम लिखा जिस किताब पर।

उमाश्री, होशंगाबाद (मप्र)

हथेलियों पर उनका नाम जब लिखती हैं उंगलियां
जमाने की चारों तरफ उठती हैं उंगलियां।
बड़े मुद्दतों के बाद आया उनका हाथ मेरे हाथों में
आज भी उन हसीन लम्हों को याद करती हैं उंगलियां।

उमेश गोस्वामी, सिमगा (छग)

इरादों को मकसद बना कर तो देखो

इरादों को मकसद बना कर तो देखो
कुछ राज हैं जो बताए नहीं जाते
कुछ आंसू हैं जो दिखाए नहीं जाते।
हम बदनसीब किसी को याद नहीं आते
आप वो खुशनसीब जो भुलाए नहीं जाते।

अजहरुद्दीन कुरेशी, सरवाड, अजमेर (राज.)

मुश्किलों में जो साथ हुआ करते हैं
हम उनके हक में भी दुआ करते हैं।
उम्मीद उन लोगों से भला क्या करना
जिनके दरवाजों पर पहरे हुआ करते हैं।

अमर मलंग, कटनी (मप्र)

निगाहों में सपना सजा कर तो देखो
इरादों को मकसद बना कर तो देखो।
किनारे पर रहकर किसे क्या मिला है
जरा बीच सागर में जाकर तो देखो।

विष्णु प्रसाद चौहान, ढाबला, हरदू (मप्र)

तो इस तरह बेरोजगार नहीं होता मैं...

छोटे से दिल में ग़म बहुत है
जिंदगी में मिलते जख्म बहुत हैं
मार डालती हमें कब की ये दुनिया
दोस्तों की दुआओं में दम बहुत है।

विशाल जैन, घुवारा (मप्र)

माना कि हर घर ताज नहीं होता
हर थोबड़ा मुमताज नहीं होता
तेरे लटके-झटकों में न पड़ता मैं
तो इस तरह बेरोजगार नहीं होता।

बलवीर सिंह, सीकर (राजस्थान)

कसूर न उनका था न मेरा
हम दोनों ही रिश्तों को निबाहते रहे
वो दोस्ती का एहसास जताते रहे
और हम मोहब्बत को दिल में छुपाते रहे।

आन वर्मा, रैवांसी सीकर(राजस्थान)

आदाब अर्जः और कब तक इंतजार किया जाए

तुम्हे भुलाने की हर कोशिश मेरी

न जाने क्यों नाकाम रही

ऐसा उलझा हूं यादों में तेरी

न सुबह रही मेरी, न मेरी शाम रही



ब्रजलाल ईमने, नेपानगर बुरहानपुर (मप्र)



ख्वाबों की हर एक गली देखी

बाग़ों में खिलती हर एक कली देखी

जो कहते थे, कभी न भूल पाएंगे

उसी के घर अपनी तस्वीर जली देखी।



ज्ञानेश्वर गेंडरे, सिमगा (छत्तीसगढ़)



वो चल पड़े होंगे अपने घर से महक उठा गरीबख़ाना

इस खबर से और कब तक इंतज़ार किया जाए

पूछ रही हैं नज़रें, हर इक नज़र से



अमर मलंग, कटनी (मप्र)

सांसों की यमुना में डूबें भीतर भी एक वृंदावन है...

विष भरा अमृत घटों में,

है जलन-सी छांव में।

फिर वफा ने मात खाई,

बेवफा के गांव में।

चल रहे थे साथ दोनों,

रहगुजर भी एक थी

अब अकेले ही खड़े हैं

जख्म लेकर पांव में?



अविनाश बागड़े, खामला, नागपुर (महाराष्ट्र)



नूपुर-नूपुर रसमय तन है।

आज बहुत थकने का मन है।

सांसों की यमुना में डूबें

भीतर भी एक वृंदावन है।



उमाश्री, होशंगाबाद (मध्यप्रदेश)



वो खुद नहीं जानते वो कितने प्यारे हैंजान हैं हमारी,

हमें जान से प्यारे हैं दूरियों के होने से क्या फर्क पड़ता है

वो कल भी हमारे थे आज भी हमारे हैं।



पूनम शर्मा, रायपुर (छत्तीसगढ़)

अब कोई अच्छा भी लगे तो...

एक हस्ती है जो जान है मेरी
जो आन से भी बढ़कर मान है मेरी।
खुदा हुक्म दे तो कर दूं सजदा उसे
क्योंकि वो कोई और नहीं मां है मेरी।

गौरव जोशी, धार (मप्र)


थक सा गया है
मेरी चाहतों का वजूद,
अब कोई अच्छा भी लगे तो
हम इज़हार नहीं करते।

अजीत, रांची (झारखंड)


आज भी उसका इंतजार है
तस्वीर उसकी दिल में बरकरार है।
वह नहीं आता है
उसकी यादों की ही भरमार है।

गफूर ‘स्नेही’, उज्जैन (मप्र)

रिश्तों में वो पहले वाली बात नहीं रही

लबों से छूके वो ताजा गुलाब देता है
कि जैसे फूल में भरकर शराब देता है
चलो वो कहता है तुम साथ मेरे खजुराहो
मैं चुप रहूं तो दुपट्टा जवाब देता है।

उमाश्री, होशंगाबाद (मप्र)

उसकी याद में हम बरसों रोते रहे
बेवफा वो निकले बदनाम हम होते रहे
प्यार में मदहोशी का आलम तो देखिए
धूल चेहरे पे थी हम आईना धोते रहे।

सुरेश कुमार मेघवाल, कोछोर, सीकर (राज)


रिश्तों में वो पहले वाली बात नहीं रही
दिल में संजो लें ऐसी सौगात नहीं रही
मोहब्बत विज्ञापन या प्रोडक्ट बन गई है
दीवाना कर दे ऐसी मुलाकात नहीं रही।

सुधा गुप्ता अमृता, कटनी (मप्र)

तमाम ख्वाब देखे एक और देखना है......

पास आपके दुनिया का हर सितारा हो
दूर आपसे गम का किनारा हो
जब भी आपकी पलकें खुलें सामने वही हो
जो दुनिया में सबसे प्यारा हो।

कु. रागिनी तायवाड़े, राजनांदगांव (छग)

तमाम ख्वाब देखे एक और देखना है
कभी रूबरू जब होंगे जी भरके देखना है
हम तो हंसते मुस्कराते हुए जी रहे हैं
बस इसी दीवानगी का असर देखना है।

उर्मिला यादव, भोपाल (मप्र)

सपना किसी भी आंख के अंदर नहीं मिलता
शोले धधक रहे हैं समंदर नहीं मिलता
मुट्ठी में रख सके जो मुकद्दर को बांध के
इस दौर में ढूंढे तो सिकंदर नहीं मिलता।

अविनाश बागड़े, नागपुर (महाराष्ट्र)

क्यों मरते हो यारो सनम के लिए....

क्यों मरते हो यारो सनम के लिए
न देगी दुपट्टा कफ़न के लिए
मरना है तो मरो वतन के लिए
तिरंगा तो मिलेगा कफ़न के लिए

करण जैन जिगर, उदयपुर (राजस्थान)

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मां की एक दुआ ज़िंदगी बना देगी
ख़ुद रोएगी, मगर तुमको हंसा देगी
कभी भूलकर भी मां को मत रुलाना
एक छोटी सी बूंद पूरी धरती हिला देगी

अशोक कुमावत, मंदसौर (मप्र)


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जहां पेड़ों पर आज चार दाने लगे हैं
हर तरफ़ सबके निशाने लगे हैं
पढ़ाई -लिखाई का मौसम कहां है
किताबों में ख़त आने जाने लगे हैं।

-समीर उत्साही-रायपुर (छग)