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Monday, July 11, 2011

खामोश रहकर क्यूं हमें जलाते हैं वो

खामोश रहकर क्यूं हमें जलाते हैं वो
अपनी यादों से हमें क्यूं रुलाते हैं वो।
तस्वीर भी नहीं है मेरे पास उनकी
तो क्यूं बंद आंखों में नजर आते हैं वो।

ज्ञानेश्वर गेण्डरे, सिमगा, रायपुर (छग)

यूं पड़ रही है चांदनी उनके शबाब पर
जैसे शराब खुद ही फिदा हो शराब पर।
उसके बरक-बरक को उड़ा ले गई हवा
मैंने तुम्हारा नाम लिखा जिस किताब पर।

उमाश्री, होशंगाबाद (मप्र)

हथेलियों पर उनका नाम जब लिखती हैं उंगलियां
जमाने की चारों तरफ उठती हैं उंगलियां।
बड़े मुद्दतों के बाद आया उनका हाथ मेरे हाथों में
आज भी उन हसीन लम्हों को याद करती हैं उंगलियां।

उमेश गोस्वामी, सिमगा (छग)

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