
खामोश रहकर क्यूं हमें जलाते हैं वो
अपनी यादों से हमें क्यूं रुलाते हैं वो।
तस्वीर भी नहीं है मेरे पास उनकी
तो क्यूं बंद आंखों में नजर आते हैं वो।
ज्ञानेश्वर गेण्डरे, सिमगा, रायपुर (छग)
यूं पड़ रही है चांदनी उनके शबाब पर
जैसे शराब खुद ही फिदा हो शराब पर।
उसके बरक-बरक को उड़ा ले गई हवा
मैंने तुम्हारा नाम लिखा जिस किताब पर।
उमाश्री, होशंगाबाद (मप्र)
हथेलियों पर उनका नाम जब लिखती हैं उंगलियां
जमाने की चारों तरफ उठती हैं उंगलियां।
बड़े मुद्दतों के बाद आया उनका हाथ मेरे हाथों में
आज भी उन हसीन लम्हों को याद करती हैं उंगलियां।
उमेश गोस्वामी, सिमगा (छग)
अपनी यादों से हमें क्यूं रुलाते हैं वो।
तस्वीर भी नहीं है मेरे पास उनकी
तो क्यूं बंद आंखों में नजर आते हैं वो।
ज्ञानेश्वर गेण्डरे, सिमगा, रायपुर (छग)
यूं पड़ रही है चांदनी उनके शबाब पर
जैसे शराब खुद ही फिदा हो शराब पर।
उसके बरक-बरक को उड़ा ले गई हवा
मैंने तुम्हारा नाम लिखा जिस किताब पर।
उमाश्री, होशंगाबाद (मप्र)
हथेलियों पर उनका नाम जब लिखती हैं उंगलियां
जमाने की चारों तरफ उठती हैं उंगलियां।
बड़े मुद्दतों के बाद आया उनका हाथ मेरे हाथों में
आज भी उन हसीन लम्हों को याद करती हैं उंगलियां।
उमेश गोस्वामी, सिमगा (छग)
No comments:
Post a Comment