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Tuesday, June 21, 2011

जिंदगी.....

जिंदगी एक शगल है,
कई चीज़ों में दखल है !

इधर उधर जो ढूँढते,
ख़ुशी तुम्हारे बगल है !

सोचे वादी खाली इन दिनों,
सुकूँ की चहल पहल है !

अरमान गोया कपड़े हो,
हर वक़्त अदल बदल है !

फिर से फुर्सत फिराक में,
नतीजा वही, ग़ज़ल है !

जिंदगी पूरी होती 'मजाल'
ये मुद्दा क्या दरअसल है ?

Monday, June 20, 2011

मोहब्बत......


करके मोहब्बत अपनी खता हो.. ऐसा भी हो सकता है..
वोह अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो.. ऐसा भी हो सकता है..
दरवाजे पर आहट सुनके उसकी तरफ़ ध्यान क्यूं गया..
आने वाली सिर्फ़ हवा हो.. ऐसा भी हो सकता है..
वोह अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो.. ऐसा भी हो सकता है..
अर्ज़-ए-तलब पे उसकी चुप से ज़ाहिर है इंकार मगर..
शायद वो कुछ सोच रहा हो.. ऐसा भी हो सकता है..
वोह अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो.. ऐसा भी हो सकता है.


 
रास्तों के पत्थर ना गिरादें मुझे..
इन लडखडाती राहों से डर के तुम्हारा हांथ मांगेगी..
उजाले भी ऐसे मिले कि रोशनी से जल गये हम..
इन उजालों से छिप कर कोई हसीन रात मांगेगी..
आज़मायेगी लम्हा-लम्हा दोस्ती ये हमारी..
वक्त की कोई घडी, वादे भरी बात मांगेगी..
हम अकेले रहें, या रहे भीड में..
आरज़ू दिल की तो बस तेरी मुलाकात मांगेगी..
ज़िन्दगी के सफ़र मे, ओ मेरे हमसफ़र..
ना जाने किस वक्त मोहब्बत, तुझसे अपने जज़बात मांगेगी..
ये जो ज़िन्दगी की किताब है..
ये किताब भी क्या खिताब है..
कहीं एक हसीं सा ख्वाब है..
कही जान-लेवा अज़ाब है..
कहीं आंसू की है दास्तान..
कहीं मुस्कुराहटों का है बयान..


करके मोहब्बत अपनी खता हो.. ऐसा भी हो सकता है..
वोह अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो.. ऐसा भी हो सकता है..
दरवाजे पर आहट सुनके उसकी तरफ़ ध्यान क्यूं गया..
आने वाली सिर्फ़ हवा हो.. ऐसा भी हो सकता है..
वोह अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो.. ऐसा भी हो सकता है..
अर्ज़-ए-तलब पे उसकी चुप से ज़ाहिर है इंकार मगर..
शायद वो कुछ सोच रहा हो.. ऐसा भी हो सकता है..
वोह अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो.. ऐसा भी हो सकता है..

हम रहें या न रहें कल, कल याद आयेंगे ये पल..
पल ये हैं प्यार के पल.. चल आ मेरे संग चल..
चल सोचें क्या.. छोटी सी है ज़िन्दगी..
कल मिल जायें, तो होगी खुश-नसीबी..
हम रहें या न रहें.. कल याद आयेंगे येह पल..

हम रहें या न रहें कल, कल याद आयेंगे ये पल..
पल ये हैं प्यार के पल.. चल आ मेरे संग चल..
चल सोचें क्या.. छोटी सी है ज़िन्दगी..
कल मिल जाये, तो होगी खुश-नसीबी.. 
हम रहें या न रहें.. कल याद आयेंगे ये पल..

शाम का आंचल ओढ के अयी.. देखो वो रात सुहानी..
आ लिखदें हम दोनो मिलके.. अपनी ये प्रेम कहानी..

हम रहें या न रहें.. कल याद आयेंगे ये पल..

आने वाली सुबह जाने, रंग क्या लाये दीवानी..
मेरी चाहत को रख लेना, जैसे कोई निशानी..
हम रहें या न रहें.. याद आयेंगे ये पल..

हम रहें या न रहें कल, कल याद आयेंगे ये पल..
पल येह हैं प्यार के पल.. चल आ मेरे संग चल..
चल सोचें क्या.. छोटी सी है ज़िन्दगी..
कल मिल जायें, तो होगी खुश-नसीबी..

हम रहें या न रहें.. कल याद आयेंगे ये पल..
—————————————प्यार के पल..

मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥

रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

कुछ शेर


जाहिद से जब सुनो तो जुबां पे है जिक्रे-हूर
नीयत   हुई   खराब फिर ईमान   कब रहा।

बोतल खुली जो हजरत-ए-जाहिद के वास्ते
मारे ख़ुशी के काग भी दो गज उछल गया।


काबा नहीं की सारी खुदाई का दखल हो
दिल में सिवाए यार किसी का गुजर नहीं।


दुनिया तो क्या खुदा से भी धबरा के कह दिया
जब वो मेहरबां नहीं तो कोई मेहरबां नहीं।


पीता हूँ  जाम मुँह से तो कहता हूँ बिस्मिल्लाह
कौन कहता है , हम रिंदों को खुदा याद नहीं।


आओ इक सज्दा करे इस आलमे-मदहोशी में 
कौन कहता है कि सागर को खुदा याद नहीं।


हुआ है चार सिज्दों पे तेरा दावा ये जाहिदों
खुदा ने क्या तुम्हारे हाथ में जन्नत बेच डाली।


जाहिद शराब पीने से काफिर हुआ मैं क्यों
क्या चार चुल्लू पानी में ईमान बह गया।


दिल खुश हुआ है मस्जिदे-वीरान देखकर 
मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है


जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर 
या ऐसी जगह बता जहां पर खुदा न हो।


जहां वाले न देखे इसलिये छुप- छुप के पीता हूँ
खुदा का खौफ कैसा वह तो इंसापोश है साकी।


खुदा के वास्ते पर्दा न काबे-जिस्म हटा जालिम
कहीं ऐसा न हो कि यां भी वो काफिर सनम निकले।


हमें पीने से मतलब है, जगह की कैद क्या बेखुद
उसी का नाम काबा रख दिया बोतल जहां रख दी।


काबा भी हम गये न गया बुतों का इश्क
इस मर्ज की खुदा के भी धर में दवा नहीं।


बातें ख्याल में करता हूँ , इस तरह
समझे कोई की आठों पहर हूँ नमाज में ।


हम तो खुदा के कभी कायल ही न थे,
उनको देखा तो खुदा याद आया।


साकी तेरी मोहब्बत क्या आलमे-मस्ती है,
जन्नत मेरी नजरों में उजड़ी हुई बस्ती है।


ये षोखी ये अल्लहड़पन, ये मस्ती , ये शबाब
क्या कहूँ तुमसे तू तो मेरी जिंदगी की कुरान है।


सुनकर तारीफ हूर की गये थे नमाज को
जलवा बुतों का देखकर नीयत बदल गई।


फर्क क्या बतायें तुमको वाइजों-आशिक में
इसकी हुज्जत में कटी उसकी मोहब्बत में !


बंदे न होंगें जितने खुदा है खुदाई में
किस-किस खुदा  के सामने सजदा करे कोई !

शेर-ओ-शायरी



चेहरे पे बनावट का गुस्सा, आंखों से छलकता प्यार भी है
इस शोख-ए-अदा को क्या कहिये, इनकार भी है इकरार भी है
----
सुनते हैं की मिल जाती है हर चीज़ दुआ से
इक रोज़ तुम्हे माँग के देखेंगे खुदा से
----
एक बार जो बिखरी तो बिखर जायेगी
जिन्दगी जुल्फ नहीं जो संवार जायेगी
----
देखा जो तीर खाके कमींगाह की तरफ
अपने ही दोस्तों से मुलाकात हो गयी
----
तुम दूर खडे देखा ही किये और डूबने वाले डूब गए
साहिल को जो मंजिल समझे वो लज्जत-ए-दरिया क्या जाने
----
पत्थर के खुदा वहाँ भी पाए
हम चाँद से आज लौट आये
----
सारे मुसाफिरों से ताल्लुक निकल पड़ा
गाड़ी में इक शख्स ने अखबार क्या लिया
----
रंज से खूगर हुआ इन्साँ तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ी इतनी की आसां हो गयी
----

कह रहा है मोज-ए-दरिया से समंदर का सुकूँ
जिसमे जितना ज़र्फ़ है वो उतना ही खामोश है
-----
जिसकी आवाज़ में सलवट हो निगाहों में चुभन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नही जोडा करते -गुलज़ार
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उम्र भर जलाता रहा इस दिल को खामोशी के साथ
और शमा को इक रात की सोज़-ए-दिली पे नाज़ था
----
आये हे बैकसी-ए-इश्क पे रोना ग़ालिब
किस के घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद
----
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाये 
----
यही हे जिंदगी कुछ ख़ाक चंद उम्मीदें
इन्ही खिलोनों से तुम भी बहल सको तो चलो
----
जिंदगी की बात सुनकर क्या कहें
इक तमन्ना थी जो अब तकाजा बन गयी
----
जिंदगी यूं हुयी बसर तनहा
काफिला साथ और सफर तनहा -गुलज़ार
----
मैंने ये कब कहा की मेरे हक में हो जवाब
खामोश मगर क्यों हे तू, कोई फैसला तो दे
----
कंद-ए-लब का उनके बोसा बे-तकल्लुफ़ ले लिया
गलियाँ खाई बला से, मुह तो मीठा हो गया
----
एक हंगामे पे मौकूफ है घर की रोनक
नोहा-ए-गम ही सही, नग्म-ए-शादी ना सही
-----
मेरी किस्मत में गम गर इतना था
दिल भी या रब कई दिए होते

मैं.....

कोई नहीं है हमसफ़र मेरा,
बिलकुल दुनियां में अकेला हूँ मैं
मैं खुद ही अपना दोस्त हूँ,
खुद अपना ही दुश्मन हूँ मैं


प्यार जताता हूँ खुद अपने आपसे,
खुद अपने आपको ही धोखा देता हूँ मैं।
पहनाता हूँ फूलों की माला अपने आपको,
राहों में अपनी ही कांटे बिछाता हूँ मैं।

ज़िन्दा होकर भी मुर्दा हूँ दोस्त,
चाहते हुए भी जी रहा हूँ मैं
सभी को क़त्ल करता जा रहा हूँ,
साथ ही अपना भी क़त्ल करता हूँ मैं

 

कोई न बातें करता मुझसे,
खुद ही अपने आपसे बातें करता हूँ मैं।
कोई भी नहीं देता है साथ मेरा,
खुद ही अपना साथ देता हूँ मैं।

परायों के लिए तो पराया ही हूँ,
लेकिन अपनों के लिए भी ग़ैर हूँ मैं
मैखाने से नहीं करता हूँ नशा,
अपने आपको ही नशेमंद बनाता हूँ मैं


ज़िन्दगी मेरी मेहफिलों से भरी है,
फिर भी क्यूँ वीरान- ओ - तनहा हूँ मैं।
देखने को तो मैं बहोत कुछ हूँ मगर,
फिर भी लगता है की कुछ भी नहीं हूँ मैं।

अपनी आँखों से देख रहा हूँ बर्बादी दुनियाँ की,
ये समझकर चुप बैठा हूँ की अंधा हूँ मैं
लेकिन जिस दिन खोल दूंगा आँखें अपनी,
दिखा दूंगा ज़माने को क्या चीज़ हूँ मैं


जिसका वार कभी खाली जाता ही नहीं,
इस किस्म का खतरनाक तीर हूँ मैं।
इश्क-ओ-मोहब्बत के इस नए दौर में,
खुद ही रांझा हूँ, खुद ही हीर हूँ मैं।

यूँ तो जवान - - तंदुरुस्त हूँ,
फिर भी बुढापे को मेहसूस कर रहा हूँ मैं
ज़िन्दगी में जीने के बहोत दिन है मेरे,
फिर भी मौत को बार बार देख रहा हूँ मैं


दुनियाँ में सभी के ख़त्म हो जाने पर,
कभी ख़त्म नहीं हो सकता ऐसा कफ़न हूँ मैं।
लिखते लिखते मेरा कोई अंत ही नहीं,
कभी न ख़त्म होनेवाला वो शेर हूँ मैं।

इश्क़..........

इश्क का खेल आम है लेकिन,
इश्क--सादक जहाँ में आम नहीं

हर तरफ मै ही मै छलकती है,
मस्त यक्सर करे जो जाम नहीं

हुस्न की हो रही है रुसवाई,
इश्क को अपना एहतराम नहीं

आओ आदाब--इश्क फिर सीखें,
सच्ची उल्फत हवस का नाम नहीं

इश्क में अपना खोना है सब कुछ,
साज़--सामाँ से कोई काम नहीं

फिर मिटाना है अपना नाम--निशाँ,
ग़ैर--मोहब्बत कोई नाम नहीं

इससे आगे है इक मकाम ऐसा,
जिसका कोई निशान--नाम नहीं

मस्तियाँ वहाँ बरसती रहती है,
खुम के खुम एक-आध जाम नहीं

जज़्बात


गुनाहे उल्फत की ऐसी सज़ा तो न दो,
छीन लो ज़िन्दगी और जीने को मजबूर करो।
मैंने मांगी थी कब ज़माने की खुशियाँ तुमसे,
कहा सांसें मेरी है तुमसे, इन्हें चलाये रखो।
 
अपनी मर्ज़ी से जीने का हक़ है तुनको,
अपनी मर्ज़ी से मर जाऊं,हक़ इतना तो दो।
हाँ दीवाना हूँ दीवाना ही रहने दो मुझे,
क्या निभाते है मोहब्बत सियाने देखो।
कभी फुर्सत में सनम अपने दिल में झांको,
खोल दो जुबाँ जज़बातों की और कुछ सुन लो।

जी चाहता है....


तुम्हारी ज़ुल्फों की घनी छाँव में,
गहरी नींद सोने को जी चाहता है
माथे की बिंदिया को तुम्हारी,
सुबह का सूरज बनाने को जी चाहता है

आँखों के कजरे को तुम्हारी,
काली घटा बनाने को जी चाहता है
झील सी आँखों में तुम्हारी,
कहीं डूब जाने को जी चाहता है

झुकती हुई पलकों को तुम्हारी,
ढलती शाम बनाने को जी चाहता है
गालों की लाली से तुम्हारी,
फूलों को रंग देने को जी चाहता है

नाज़ुक तुम्हारे होंठों को,
फूलों की पंखुडियां बनाने को जी चाहता है
इन होठों के रस को तुम्हारे,
जाम बनाकर पीने को जी चाहता है

बदन की खुशबू को तुम्हारी,
साँसों में बसाने को जी चाहता है
पायल की छम-छम को तुम्हारी,
मेरे संगीत की झंकार बनाने को जी चाहता है

चूड़ियों की खन-खन को तुम्हारी,
दिल की धड़कन बनाने को जी चाहता है
तुम्हारे जैसी हसीना को तो,
हरदम अपनाने को जी चाहता है.

रात,,,,


जिसमे नहीं बिलकुल उजाला,
ऐसी ये अँधेरी रात।
उलझन में पद गया हूँ ,
है ये कैसी राज़ की बात।

कोई न देता तनख्वाह तुझे,
फिर भी न करती आने में देरी।
ग़ज़ब की वफादार है तू,
वल्लाह, दाद देनी पड़ेगी तेरी।

तेरे आने से चाँद जगमगाये,
आने पर तेरे, तारे झिलमिलाये।
जब-जब तू दिनियाँ पर छाये,
बागों में रातरानी खिल जाए।

तू तो वो खुशनसीब है,
जो दो दिलो-जिस्मों को एक करते है।
तेरा साथ लेकर ही दुनिया में,
दो दिल ज़िन्दगी की पहेल करते है।

जब-जब मैं तुझे देखता हूँ,
बस तुझे ही देखते रहता हूँ।
दुनियाँ में काली होकर भी हसीन रात,
मै तुझे दिल से सलाम करता हूँ।

कौन हो तुम....



मेरी साँसों में हो तुम, 
दिल की धड़कन में हो तुम।
 दिल-ओ-दिमाग में हो तुम, 
मेरी नस-नस में हो तुम।
 सिर्फ एक बार बता दो,कौन हो तुम।
कभी मेरे बिलकुल करीब हो तुम, 

तो कभी मुझसे कोसो दूर हो तुम।
 कभी बिजली काय इ कड़कती आवाज़ हो तुम, 
तो कभी संगीत का मीठा सुर हो तुम। 
सिर्फ एक बार बता दो,कौन हो तुम।
कभी मुझसे वाकिफ़ हो तुम,

 कभी मुझसे अनजान हो तुम। 
तुम्हारे बिन मैं कभी जी नहीं सकता,
 जीउँ भी तो कैसे मेरी जान हो तुम। 
सिर्फ एक बार बता दो,
 कौन हो तू।

उसे इन्सान कहते हैं.....


किसी के काम जो आये,
उसे इन्सान कहते है
पराया दर्द अपनाए,
उसे इन्सान कहते है
कभी धनवान है कितना,
कभी इन्सान निर्धन है
कभी सुख है कभी दुःख है,
इसी का नाम जीवन है
जो मुश्किल में घबराए,
उसे इन्सान कहते है
किसी के काम जो आये,
उसे इन्सान कहते है
ये दुनियाँ एक उलझन है,
कहीं धोका, कहीं ठोकर
कोई हँस-हँसके सहता है,
कोई सहता है रो-रोकर
जो गिरकर फिर संभल जाए,
उसे इन्सान कहते है
किसी के काम जो आये,
उसे इन्सान कहते है
कभी सदगुण हँसाते है,
कभी भूलें सताती है
भला है भूल होना,
कभी वो हो ही जाती है
जो कर ले ठीक गलती को,
उसे इन्सान कहते है
किसी के काम जो आये,
उसे इन्सान कहते है
यूँ भरने को तो दुनियाँ में,
पशु भी पेट भरते है
रखे इन्सान का दिल जो,
वही परमार्थ करते है
खुद जो बांटकर खाये,
उसे इन्सान केहते है।
किसी के काम जो आये,
उसे इन्सान केहते है.

जीवन.....


हर दिल में आस हैं जीने की,
समृद्ध सुखी ऐसा एक जीवन
जिसमें ना हो कोई भी दुःख,
ना दर्दभरा कोई भी मन

पर अक्सर मानव भूले हैं,
जो देता है सो सुखी रहे
और ये भी वो ना याद रखे,
कि लेनेवाला आह भरे

क्या कहना इस मानव मन का,
इस में लोभ पाप है भरे हुए
हर मन में भ्रष्टाचार भरा,
इस अँधकार में खड़े हुए.

अगर याद रहे छोटी कुछ बातें,
सुख में बीती कुछ यादें
तो जान पड़े हम सबको कि,
क्या इस सबसे हम सुखी हुए

सेवा में ही सुख मिलता है,
सेवा से ही दुःख मिटता है
सेवा सबका ही कष्ट हरे,
सेवा ही जीवन सफल करे

सेवा से जीवन सफल बना,
जीवन में पाप कभी करना
चाहे तू स्वर्ग में दास रहे,
पर नर्क में राज कभी मत करना.

पिये जा......




न कोई हमसफर है,
न कोई भी हमदम है।
सुनी-सुनी है ज़िन्दगी जैसे,
और बहुत कुछ कम है।
इसी ग़म में आज,
ऐ दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा


ज़मीन-ए-सहर न देखि,
आसमान-ए-शब् ना देखा।
हमारी सेहर-ओ-शाम कैसी बीती,
हमनें ये तक ना देखा।
इसी ग़म में आज,
ऐ दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा।


जहाँ में है कामयाब लोग,
हम तो सदा के नाकामयाब है।
हर कोई है सिकंदर मुक़द्दर का,
अपना तो नसीबा ही खराब है।
इसी ग़म में आज,
ऐ दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा।


था मैं नन्हा सा तारा,
हर ग़म से था अंजाना।
क्यूँ हुआ मैं जवाँ,
खो गया वो बचपन सुहाना।
इसी ग़म में आज,
ऐ दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा।


इन बादलों से गूँजती है,
आवाज़ मेरे दर्द की।
कराहती है ज़मीन भी,
रोता है फ़लक भी.
इसी ग़म में आज,
ऐ दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा।


ज़हर के प्याले हैं मेरे लिए,
कहीं कोई जाम तो होगा नहीं।
आग़ाज़ ही बदतर था मेरा,
अंजाम क्या होगा सही।
इसी ग़म में आज,
ऐ दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा।


मोहब्बत की झुकी थी डाल,
वो अब तन गयी हैं क्यूँ।
फूल जो खिले थे कभी राहों में,
वो अब शूल बन गये है क्यूँ।
इसी ग़म में आज,
ऐ दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा।


ये रंज-ओ-ग़म की स्याहियाँ,
ये ज़िन्दगीभर की उदासियाँ।
समाता चला हूँ मैं खुद में,
इस दिल की कईं परेशानियाँ.
इसी ग़म में आज,
ऐ दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा।


कौनसा गुनाह किया था मैंने,
बता ऐ खुदा तेरा।
ये बदतर ज़िन्दगी दी मुझे,
बददुआ दूँ या शुक्रिया अदा करू तेरा।
इसी ग़म में आज,
ऐ दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा।


फूल दुनियाँ में लोगों के लिए,
अपने लिए बस काँटे हैं।
सबके नसीब में खुशियाँ है,
अपने तो दिन ही कहाँ आते हैं।
इसी ग़म में आज,
ऐ दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा।


ज़िन्दगी से नहीं रहा है प्यार,
चैन की नींद भी नहीं आती।
मरना तो हम भी चाहते है मगर,
कमबख्त ये मौत ही नहीं आती।
इसी ग़म में आज,
ऐ दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा.

तेरे हुस्न ने.......


तेरे हुस्न ने मुझे,
दीवाना बना दिया
अपनों से दूर करके,
मुझे बेग़ाना बना दिया

दिल कभी फौलाद था मेरा,
तेरे इश्क ने पिघला दिया
मेरे दिल के जहान को,
तेरी चाहत ने हिला दिया

ग़मगीन अंदाज़ को मेरे,
तुने शायराना बना दिया
तन्हाइनुमा मिजाज़ को मेरे ,
तुने दोस्ताना बना दिया

कुछ सूझता ही नहीं मुझे,

सिवाय तेरे ख़यालों के
तेरी याद और ख़यालों ने,
इस दिल को आशियाना बना दिया

तेरा हाथ, हाथ में हो अगर,,,,,

तेरा हाथ, हाथ में हो अगर,
तो सफर ही असले हयात है.

मेरे हर कदम पे है मंज़िलें,
तेरा प्यार ग़र मरे साथ है.

मेरी बात का मेरी हमनफ़स,
तू जवाब दे कि ना दे मुझे,

तेरी एक चुप में जो है छुपी,
वो हज़ार बातों कि बात है.

मेरी ज़िंदगी का हर एक पल,
तेरे हुस्न से है जुड़ा हुआ.

तेरे होंठ थिरके तो सुबहें है,
तेरी ज़ुल्फ बिखरें तो रात है.

तेरा हाथ, हाथ में हो अगर,
तो सफर ही असले हयात है.

मैं पल दो पल का शायिर हूँ..

कल नयी पोंक्लें फूटेंगी,
कल नये फुल मुस्कायेंगे.
और नयी घांस के नए फर्श पर,
नये पाँव इठलायेंगे.
वो मेरे बीच नहीं आये,
मैं उनके बीच में क्यूँ आऊँ.
उनकी सुबहों और शामों का,
मैं एक भी लम्हा क्यूँ पाऊँ.
मैं पल दो पल का शायिर हूँ,
पल दो पल मेरी कहानी है.
पल दो पल मेरी हस्ती है,
पल दो पल मेरी जवानी है

चल दिये.......

कुछ तो ख़ता हुई होगी हमसे,
जो वो हमें छोड़कर चल दिये.
उम्रभर साथ देने का वादा था,
बीच सफ़र में तनहा छोड़कर चल दिये.

जिसकी आरज़ू थी हमें सदियों से,
वो प्यार हमारा हमसे छीन गया.
वो कहते थे मुझसे मै पत्थरदिल हूँ,
और आज वो पत्थर का दिल भी तोड़कर चल दिए.

"अब से मुझे भूल जाना तुम."
बस यही आखरी मुलाक़ात के लफ्ज़ थे.
जाते जाते ये भी ना वो देख सके,
मेरे दिल में यादों के मेले छोड़कर चल दिये.

ऐ मौत तू क्या मारेगी मुझे,
मेरे सनम ने ही मुझे क़त्ल कर दिया.
दिल तोड़कर रूह छीन ली उन्होंने,
बस एक ज़िंदा लाश छोड़कर चल दिये.