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Monday, July 11, 2011

सूरज की किरण हूं यूं चमक छोड़ जाऊंगा..

कोई कहता है जिंदगी जीने का नाम है
कोई कहता है जिंदगी पीने का नाम है
दोस्तों ये सब नजर-नजर का खेल है
जिंदगी जख्मों से भरे सीने का नाम है।
 
नरेंद्र तायवाड़े, राजनांदगांव (छग)

चलो तस्कीद कर लें अब अपनी बात की।
आने वाली फिर इक नई मुलाकात की।
सुना है मौसमे बहार भी आने को है।
दास्तां कोई सुना रहा चांदनी रात की।
 
अमर मलंग, कटनी (मप्र)

बेवफा नहीं हूं तो कैसे दिल तोड़ जाऊंगा
सूरज की किरण हूं यूं चमक छोड़ जाऊंगा।
वादा नहीं करता जिंदगी ये कर्जदार है
न जाने किस मोड़ पर सांसें छोड़ जाऊंगा।
 
पंकज आशिया, सोजत सिटी (राज.)

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