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Monday, July 11, 2011

क्यों मरते हो यारो सनम के लिए....

क्यों मरते हो यारो सनम के लिए
न देगी दुपट्टा कफ़न के लिए
मरना है तो मरो वतन के लिए
तिरंगा तो मिलेगा कफ़न के लिए

करण जैन जिगर, उदयपुर (राजस्थान)

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मां की एक दुआ ज़िंदगी बना देगी
ख़ुद रोएगी, मगर तुमको हंसा देगी
कभी भूलकर भी मां को मत रुलाना
एक छोटी सी बूंद पूरी धरती हिला देगी

अशोक कुमावत, मंदसौर (मप्र)


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जहां पेड़ों पर आज चार दाने लगे हैं
हर तरफ़ सबके निशाने लगे हैं
पढ़ाई -लिखाई का मौसम कहां है
किताबों में ख़त आने जाने लगे हैं।

-समीर उत्साही-रायपुर (छग)

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