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Monday, July 11, 2011

सांसों की यमुना में डूबें भीतर भी एक वृंदावन है...

विष भरा अमृत घटों में,

है जलन-सी छांव में।

फिर वफा ने मात खाई,

बेवफा के गांव में।

चल रहे थे साथ दोनों,

रहगुजर भी एक थी

अब अकेले ही खड़े हैं

जख्म लेकर पांव में?



अविनाश बागड़े, खामला, नागपुर (महाराष्ट्र)



नूपुर-नूपुर रसमय तन है।

आज बहुत थकने का मन है।

सांसों की यमुना में डूबें

भीतर भी एक वृंदावन है।



उमाश्री, होशंगाबाद (मध्यप्रदेश)



वो खुद नहीं जानते वो कितने प्यारे हैंजान हैं हमारी,

हमें जान से प्यारे हैं दूरियों के होने से क्या फर्क पड़ता है

वो कल भी हमारे थे आज भी हमारे हैं।



पूनम शर्मा, रायपुर (छत्तीसगढ़)

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