जाहिद से जब सुनो तो जुबां पे है जिक्रे-हूर
नीयत हुई खराब फिर ईमान कब रहा।
नीयत हुई खराब फिर ईमान कब रहा।
बोतल खुली जो हजरत-ए-जाहिद के वास्ते
मारे ख़ुशी के काग भी दो गज उछल गया।
काबा नहीं की सारी खुदाई का दखल हो
दिल में सिवाए यार किसी का गुजर नहीं।
दुनिया तो क्या खुदा से भी धबरा के कह दिया
जब वो मेहरबां नहीं तो कोई मेहरबां नहीं।
पीता हूँ जाम मुँह से तो कहता हूँ बिस्मिल्लाह
कौन कहता है , हम रिंदों को खुदा याद नहीं।
आओ इक सज्दा करे इस आलमे-मदहोशी में
कौन कहता है कि सागर को खुदा याद नहीं।
हुआ है चार सिज्दों पे तेरा दावा ये जाहिदों
खुदा ने क्या तुम्हारे हाथ में जन्नत बेच डाली।
जाहिद शराब पीने से काफिर हुआ मैं क्यों
क्या चार चुल्लू पानी में ईमान बह गया।
दिल खुश हुआ है मस्जिदे-वीरान देखकर
मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है
जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या ऐसी जगह बता जहां पर खुदा न हो।
जहां वाले न देखे इसलिये छुप- छुप के पीता हूँ
खुदा का खौफ कैसा वह तो इंसापोश है साकी।
खुदा के वास्ते पर्दा न काबे-जिस्म हटा जालिम
कहीं ऐसा न हो कि यां भी वो काफिर सनम निकले।
हमें पीने से मतलब है, जगह की कैद क्या बेखुद
उसी का नाम काबा रख दिया बोतल जहां रख दी।
काबा भी हम गये न गया बुतों का इश्क
इस मर्ज की खुदा के भी धर में दवा नहीं।
बातें ख्याल में करता हूँ , इस तरह
समझे कोई की आठों पहर हूँ नमाज में ।
हम तो खुदा के कभी कायल ही न थे,
उनको देखा तो खुदा याद आया।
साकी तेरी मोहब्बत क्या आलमे-मस्ती है,
जन्नत मेरी नजरों में उजड़ी हुई बस्ती है।
ये षोखी ये अल्लहड़पन, ये मस्ती , ये शबाब
क्या कहूँ तुमसे तू तो मेरी जिंदगी की कुरान है।
सुनकर तारीफ हूर की गये थे नमाज को
जलवा बुतों का देखकर नीयत बदल गई।
फर्क क्या बतायें तुमको वाइजों-आशिक में
इसकी हुज्जत में कटी उसकी मोहब्बत में !
बंदे न होंगें जितने खुदा है खुदाई में
किस-किस खुदा के सामने सजदा करे कोई !
काबा नहीं की सारी खुदाई का दखल हो
दिल में सिवाए यार किसी का गुजर नहीं।
दुनिया तो क्या खुदा से भी धबरा के कह दिया
जब वो मेहरबां नहीं तो कोई मेहरबां नहीं।
पीता हूँ जाम मुँह से तो कहता हूँ बिस्मिल्लाह
कौन कहता है , हम रिंदों को खुदा याद नहीं।
आओ इक सज्दा करे इस आलमे-मदहोशी में
कौन कहता है कि सागर को खुदा याद नहीं।
हुआ है चार सिज्दों पे तेरा दावा ये जाहिदों
खुदा ने क्या तुम्हारे हाथ में जन्नत बेच डाली।
जाहिद शराब पीने से काफिर हुआ मैं क्यों
क्या चार चुल्लू पानी में ईमान बह गया।
दिल खुश हुआ है मस्जिदे-वीरान देखकर
मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है
जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या ऐसी जगह बता जहां पर खुदा न हो।
जहां वाले न देखे इसलिये छुप- छुप के पीता हूँ
खुदा का खौफ कैसा वह तो इंसापोश है साकी।
खुदा के वास्ते पर्दा न काबे-जिस्म हटा जालिम
कहीं ऐसा न हो कि यां भी वो काफिर सनम निकले।
हमें पीने से मतलब है, जगह की कैद क्या बेखुद
उसी का नाम काबा रख दिया बोतल जहां रख दी।
काबा भी हम गये न गया बुतों का इश्क
इस मर्ज की खुदा के भी धर में दवा नहीं।
बातें ख्याल में करता हूँ , इस तरह
समझे कोई की आठों पहर हूँ नमाज में ।
हम तो खुदा के कभी कायल ही न थे,
उनको देखा तो खुदा याद आया।
साकी तेरी मोहब्बत क्या आलमे-मस्ती है,
जन्नत मेरी नजरों में उजड़ी हुई बस्ती है।
ये षोखी ये अल्लहड़पन, ये मस्ती , ये शबाब
क्या कहूँ तुमसे तू तो मेरी जिंदगी की कुरान है।
सुनकर तारीफ हूर की गये थे नमाज को
जलवा बुतों का देखकर नीयत बदल गई।
फर्क क्या बतायें तुमको वाइजों-आशिक में
इसकी हुज्जत में कटी उसकी मोहब्बत में !
बंदे न होंगें जितने खुदा है खुदाई में
किस-किस खुदा के सामने सजदा करे कोई !
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