तुम्हारी ज़ुल्फों की घनी छाँव में,
गहरी नींद सोने को जी चाहता है।
माथे की बिंदिया को तुम्हारी,
सुबह का सूरज बनाने को जी चाहता है।
आँखों के कजरे को तुम्हारी,
काली घटा बनाने को जी चाहता है।
झील सी आँखों में तुम्हारी,
कहीं डूब जाने को जी चाहता है।
झुकती हुई पलकों को तुम्हारी,
ढलती शाम बनाने को जी चाहता है।
गालों की लाली से तुम्हारी,
फूलों को रंग देने को जी चाहता है।
नाज़ुक तुम्हारे होंठों को,
फूलों की पंखुडियां बनाने को जी चाहता है।
इन होठों के रस को तुम्हारे,
जाम बनाकर पीने को जी चाहता है।
बदन की खुशबू को तुम्हारी,
साँसों में बसाने को जी चाहता है।
पायल की छम-छम को तुम्हारी,
मेरे संगीत की झंकार बनाने को जी चाहता है।
चूड़ियों की खन-खन को तुम्हारी,
दिल की धड़कन बनाने को जी चाहता है।
तुम्हारे जैसी हसीना को तो,
हरदम अपनाने को जी चाहता है.
गहरी नींद सोने को जी चाहता है।
माथे की बिंदिया को तुम्हारी,
सुबह का सूरज बनाने को जी चाहता है।
आँखों के कजरे को तुम्हारी,
काली घटा बनाने को जी चाहता है।
झील सी आँखों में तुम्हारी,
कहीं डूब जाने को जी चाहता है।
झुकती हुई पलकों को तुम्हारी,
ढलती शाम बनाने को जी चाहता है।
गालों की लाली से तुम्हारी,
फूलों को रंग देने को जी चाहता है।
नाज़ुक तुम्हारे होंठों को,
फूलों की पंखुडियां बनाने को जी चाहता है।
इन होठों के रस को तुम्हारे,
जाम बनाकर पीने को जी चाहता है।
बदन की खुशबू को तुम्हारी,
साँसों में बसाने को जी चाहता है।
पायल की छम-छम को तुम्हारी,
मेरे संगीत की झंकार बनाने को जी चाहता है।
चूड़ियों की खन-खन को तुम्हारी,
दिल की धड़कन बनाने को जी चाहता है।
तुम्हारे जैसी हसीना को तो,
हरदम अपनाने को जी चाहता है.
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